Whenever a person does any work in his life, he/she hopes that some things will be useful when the need arises like his friends, money, relatives, or money. So, the person makes an assumption in his mind that that whenever he needs something or someone; they will present themselves in front of him/her. So, the person procrastinate the work in hopes of an another person doing that work. What does 'Neeti' says in this matter. Neeti tells about two things which are never useful when needed. Let's ask Acharya Rajendra Mishra about these two things.
हर व्यक्ति अपने जीवन में जब कोई काम करता है तो वह आशा करता है की ये चीज़े उसके काम आएंगी जैसे मित्र रिश्तेदार या कोई वस्तु जैसे पैसे उसके काम आएंगी. व्यक्ति ऐसी धारणा बना लेता है की जब भी उसे किसी चीज़ की ज़रुरत होती है, या कोई काम करना होता है, वह काम कोई दूसरा कर देगा इसलिए वो दुसरे के भरोसे ही कार्य छोड़ देते है. लेकिन इसमें नीति क्या कहती है ? इसमें नीति ऐसी दो चीज़ों के बारे में बताती है जो ज़रुरत पड़ने पर कभी काम नहीं आती. आइये जाने आचार्य राजेंद्र मिश्रा से इन दोनों चीज़ों के बारे में.